शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

पंडिताइन उल्‍टा बहती हैं


बीजी पांडे आज सुबह चाचा की कचहरी में गैरहाजिर थे। बलेसर, जुम्‍मन और नारद तो यह मानकर बैठे थे कि चच्‍ची की चाय से पहले बीजी जरूर आ जाएंगे। क्‍योंकि पंद्रह साल पहले जिस दिन से सीताराम चाचा गांव में स्‍थाई रूप से रहने आए तब से लेकर आज तक बिना नागा उनके चारों चकोरों ने सुबह की चाय चच्‍ची के हाथ की पी है। चच्‍ची ने हाथ में केतली लिये घर के दरवाजे पर आकर नारद को हाक लगाया। चच्‍ची ने नारद के हाथ में केतली के साथ साथ पांच प्‍याले भी थमाए। नारद ने रोज की तरह पांचो प्‍यालों को लबालब चाय से भरा और एक एक कर चाचा, जुम्‍मन और बलेसर को देने के बाद एक प्‍याला खुद ले लिया।

बीजी का पांचवा प्‍याला आज उदास था। उसको पीने वाला आज नहीं था। उसमें से भाप निकल रहा था। जाडा, गर्मी, बरसात ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी एक के बगैर वहां चाय की महफिल जमी हो। चाचा ने बलेसर से पूछा, तुम तो बीजी के घर से ही होकर आती हो। अक्‍सर तुम दोनों साथ ही आती हो, तो आज क्‍या हो गया कि बीजी पंडित नहीं आई। बलेसर ने बताया कि आते समय महराज जी (हमारे गांव में पंडिजी को महराज जी कहा जाता है) दिखाई नहीं दिये, तो मैने सोचा आज जल्‍दी हाथ मुंह धोकर कउडा पहुंच गए होंगे।

चाचा ने बारी बारी से जुम्‍मन और नारद से भी तस्‍दीक किया कि पंडित के बारे में तुम लोगों को कुछ जानकारी है कि नहीं, लेकिन दोनों ने नावाकिफी जाहिर कर दी। चाचा के माथे की सलवटें गहरी हो गईं। ऐसा तो नहीं इस भीषण ठंड में पंडित बीमार पड गई हो। चाय का सुडुक्‍का मारने में मगन नारद को चाचा का आदेश मिला कि वह चाय खत्‍म होते ही बीजी के घर जाकर उनका हाल चाल ले और अगर चलने फिरने लायक हों तो साथ में लेकर आए।
नारद जितना चाय पी चुका था उसे ही अपना भाग्‍य मानकर चाचा के आदेश का पालन किया। चाचा के घर के पिछवाडे चौथा घर बीजी पंडित का है। वह जब उनके दरवाजे पहुंचा तो वहां महराज जी को नहीं पाकर घर के भीतर हांक लगाया। महराज जी.. महराज जी... ओ महराज जी....। अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। नाई और पुरोहित का रिश्‍ता है नारद और बीजी में। इसलिए उसका उनके घर के अंदर भी आना जाना होता था। नारद सोचने लगा,  इससे पहले तो एक बार हांक लगाने पर महराज जी के नहीं होने पर पंडिताइन आ जाती थीं, आज वो भी नहीं आ रही हैं।

चाचा के अंदेशे पर नारद को अब भरोसा होने लगा। वह यह मानकर घर के अंदर खांसते खखारते पहुंच गया कि महराज जी ने खाट पकड ली है। उसने देखा कि पंडिताइन चुल्‍हे पर खाना बना रही हैं और उसके अंदर आ जाने से अनजान होने का स्‍वांग कर रही हैं। उसके हाथ हठात उठ गए और वह पंडिताइन की पैलग्‍गी (प्रणाम) करने के बाद पूछा कि महराज जी दिखाई नहीं दे रहे हैं। उनका मिजाज दुरूस्‍त नहीं है क्‍या। पंडिताइन ने कुछ जवाब नहीं दिया, बस हाथ के इशारे से बता दिया कि पंडित उस कमरे में हैं। नारद बिना देर किये उस कमरे में दाखिल हो गया। देखा बीजी बहुत उदास मन से खैनी मल रहे हैं। वाह महराज जी अकेले अकेले खैनी बन रही है। चेहरा उतरा हुआ है। बात क्‍या है, मिजाज हाथ में है कि नहीं। चाचा आपके नहीं आने से बहुत चिन्तित और परेशान हैं। आपको बुलाया है, जल्‍दी चलिए।

खैनी का एक बीडा नारद की ओर बढाकर बाकी अपने होठों के हवाले कर बीजी धीरे धीरे बिछौना से उतरे और बिना कुछ बोले चल पडे। उनके पीछे पीछे नारद भी चला। बस कुछ ही क्षण में दोनों चाचा के कउडा पहुंच गए। उसको अचंभा हो रहा था कि बिना मतलब बोलने वाले महराज जी को आज हो क्‍या गया है। रास्‍ते में भी कुछ नहीं बोले। बीजी को आते देख चाचा खडे हो गए और पास आने पर उनको ऐसे गले लगाया जैसे बहुत दिनों का बिछुडा कोई अजीज मिल गया हो। यही चाचा की खूबी भी है। वह गांव के हर आदमी से बहुत अपनापा रखते हैं। किसी को भी गैर नहीं समझते। सबके सुख दुख में ऐसे शरीक होते हैं जैसे वो सारा सुख दुख उन्‍हीं का है।
बीजी का उतरा चेहरा देखते ही चाचा यह जानने के लिए परेशान हो गए कि आखिर माजरा क्‍या है। ऐ पंडित तुम्‍हारे चेहरे पर बारह क्‍यों बज रही है। बिना बात के हंसने वाली और बिना लाग लपेट बोलने वाली पंडित तुम्‍हारे मुंह पर किसने पहरा लगा दिया है। बीजी की आंखों में आंसू भर आए। धीरे से बोले पंडिताइन से तंग आ गया हूं। बात बेबात झगडा करने पर उतारू रहती है। मन बहुत बेकल (बेचैन) हो रहा है। मन कर रहा है गांव छोडकर कहीं दूर चला जाउं।

चाचा को लग गया मामला गंभीर है। चाचा के अनुभव बता रहे थे कि पंडित और पंडिताइन में जरूर कुछ लंबा लफडा हुआ है। इसका भी इलाज चाचा के पास है। अक्‍सर जब माहौल बोझिल होता है तो चाचा उसको हल्‍का करने के लिए अपने पिटारे से एक कहानी निकालकर सुनाने बैठ जाते हैं। अब तक उनकी जितनी भी कहानियां हमने सुनी है उसमें रोचकता के साथ साथ एक बडा संदेश भी होता है। चाचा ने कहा क्‍या पंडित इतनी सी बात पर तुम दुखी हुए जा रहे हो। दुनिया में तुमसे भी बडे दुखियारे हैं। एक उेसा ही वाकया सुनाओ रहा हूं, सुनो ...
एक पंडित जी थे। वह अपनी पंडिताइन से बहुत दुखी रहते थे। क्‍योंकि पंडिताइन उनका एक भी कहा नहीं मानती थीं। पंडित जी अगर पूरब को पूरब कहते तो वह कहती आपको कुछ नहीं मालूम यह पश्चिम है। सूरज तो उधर से उगता है। अगर पंडित जी रात को रात कहते तो वह कहती इतना उजाला है और आप कह रहे हैं रात है। पंडित जी को जब कुछ बढिया खाने का मन करता तो पंडिताइन मोटी रोटी और सूखी सब्‍जी परोस देती। यानी पंडिताइन पंडित जी जो भी कहते या करते थे उसका उलटा ही पंडिताइन कहती और करती थीं।

रोज रोज इन बातों को लेकर दोनों में झगडा होता रहता था। पंडिताइन अलग से रोज ताना देती कि अब तो आप भिक्षा मांगने से भी जी चुराने लगे हैं। आपके हाथ में बरक्‍कत ही नहीं है। पंडित जी बहुत दुखी हो गए थे। थक हारकर पंडित जी अपने एक दोस्‍त के पास गए और बोले, यार पंडिताइन ने मेरे जीवन को नरक बना दिया है। अत्‍याचार पर अत्‍याचार किये जा ही है। बताओ मैं क्‍या करूं। उसने कहा कि तुम भी पंडिताइन की तरह हो जाओ। उन्‍हीं के फार्मूले पर काम करो। सब कुछ उल्‍टा बोलो और करो। जब पूडी खाने का मन करे तो सत्‍तू मांगो। दिन को रात कहो। उत्‍तर को दक्षिण कहो। इससे सारी चीजें अपने आप ठीक हो जाएंगी।

पंडित जी ने वही फार्मूला अख्तियार किया। शाम को आजमाने के लिए बोले पंडिताइन आज रात में मैं सत्‍तू खाउंगा। पंडिताइन ने कहा आप तो हमारी नाक कटवा के दम लेंगे। लोग सुनेंगे कि पंडिताइन रात में पंडित जी को सत्‍तू खिलाती है, तो क्‍या कहेंगे। आज पुडी खीर बनाएंगे और आपको तबियत से जिमाएंगे। मित्र से मिला फंडा काम आया। रात को पुडी खीर उडाने के बाद पंडित जी को रात में चैन की नींद आई। सुबह उठते ही नहा धोकर पंडित जी भिक्षाटन के लिए तैयार हुए। पंडिताइन ने उन्‍हें रोक दिया। पंडित जी आप कुछ दिन भिक्षाटन नहीं भी करेंगे तो चलेगा। घर में सब कुछ भरा पडा है।

पंडित के मन में गुब्‍बारे फूटने लगे। अब उनके दिन रात ठीक से कटने लगे। कुछ दिन बाद पंडिताइन को लगा कि क्‍या बात है अब पंडित मेरी हर बात को मानने लगे हैं। अब किसी बात पर झगडा भी नहीं करते। यह उनकी कोई चाल तो नहीं। पंडिताइन को पंडित का सुख कैसे सहन होता। वह फिर पुराने ढर्रे पर आ गईं। पंडित के लिए वही चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात वाली स्थिति हो गई।
फिर वह अपने मित्र के पास गए। मित्र ने कहा पंडित जी हरिद्वार में महाकुंभ लगा है। जाओ पंडिताइन को स्‍नान करा लाओ। हो सकता है कि गंगा जी के पवित्र जल से उनका मन भी निर्मल हो जाए। पंडित जी घर पहुंचे और पंडिताइन से बोले, सुनती हो हरिद्वार में महाकुंभ लगा है। मैं सोच रहा हूं अकेले जाकर स्‍नान कर आउं। पंडिताइन गुस्‍से से आग बबूला हो गईं। सारा पूण्‍य अकेले अकेल के लिए है और सारा पाप मेरे हिस्‍से। बहुत भाग्‍य से तीर्थ पर जाने का अवसर मिलता है। मैं भी चलूंगी आपके साथ।

पंडित तो यही चाहते थे। शायद साथ चलने का उनका प्रस्‍ताव होता तो पंडिताइन जाती भी नहीं। तैयारी शुरू हो गई और कुछ दिन बाद दोनों हरिद्वार तीर्थयात्रा पर निकल गए। मकर संक्रान्ति को पहला स्‍नान था। पंडिताइन ने कहा चार बजे भोर में ही हम लोग गंगा के किनारे पहुंच जाएंगे, नहीं तो बाद में बहुत भीड हो जाएगी।

तय समय पर दोनों गंगा किनारे पहुंचे और डुबकी लगाने के लिए गंगा में उतरने के लिए चले। पंडित ने कहा, पंडिताइन किनारे ही नहा लो अंदर नदी बहुत गहरी है। पंडित से यहीं भूल हो गई। पंडिताइन कहां उनकी बात मानने वाली। बोलीं, किनारे नहाएं हमारे दुश्‍मन। सारा पाप किनारे आकर लग गया है और आप कह रहे हैं मैं पाप में डुबकी लगाउं। यही बोलते बोलते पंडिताइन अंदर गईं और गंगा के तेज प्रवाह में बह गईं।

प्रवाह पूरब की तरफ था और पंडित जी पश्चिम की ओर उनको पकडने दौडे। लोगों ने कहा अरे पंडित जी धारा तो पूरब की ओर है और आप पश्चिम की ओर उनको पकडने जा रहे हैं। पंडित जी ने कहा पश्चिम की ओर इसलिए जा रहा हूं कि हमारी पंडिताइन उलटा बहती हैं। इस कहानी का मैसेज यह है कि जो अपनों का कहा नहीं मानता उसका हस्र ऐसा ही होता है।
चाचा की कहानी पर सभी हंसने लगे, लेकिन बीजी के चेहरे पर अब भी उदासी का ही डेरा था। चाचा ने अपना प्रयास विफल होते देख बीजी से बोले, पंडित दुनिया में तमाम देशों की बडी बडी समस्‍याएं बातचीत से हल हो जाती हैं। उनके आगे तुम्‍हारी समस्‍या तो बहुत छोटी है। जाओ पंडिताइन को मेरी यह कहानी सुनाओ और उनसे बात करो तुम्‍हारी सारी समस्‍या अपने आप खत्‍म हो जाएगी। बीजी पांडेय ने चाचा के नुस्‍खे पर अमल किया और फिर उनकी पारिवारिक जीवन पटरी पर चल निकला।

3 टिप्‍पणियां:

  1. Kya baat hai. Is rochak kahani ko sun kar mujhe baba yaad aa rahen hain. Vaise mere Tauji bhi taiji se aise hi jhagadte huye ulata hi karte the. So aap bhi mera blog rajubindas.blogspot.com ko mat padhiye .. kuch khas nahi hai :)

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  2. sir maja aa gaya. real life ke real charecters se bhari apki kahaniyan aur baton baton me inse milne wala meassage bahut hi rochak hota hai.

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  3. bhai kahani bhi achhi hai aur kahani ka sandesh bhi, prastutikaran to aisa ki rukane ka man hi nahi kaha . bhai aise hi rochak tareeke se gaon ki kuchh maulik samashyaon par bhi likhiye jinhe samanya bloger chhuna bhi pap samajhate hain. chhunki aap mere liye samanya nahi hai isliye ummid hai ki agrah sweekarenge.

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