बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

घोंघाबसंत मामा


बहुत दिनों बाद गांव गया था। वहां तमाम नयी बातें जानने और सुनने को मिलीं। उसमें एक बात यह थी कि मामा इन दिनों आए हुए हैं। मामा सरकारी मुलाजिम थे। पिछले चार सालों से रिटायर चल रहे हैं। मामा संग्रह अमीनों के चपरासी थे। संग्रह अमीनों इसलिए कि हमारे गांव के कई अमीन बदले, लेकिन मामा नहीं बदले। उनका सर्किल (क्षेत्र) नहीं बदला। मामा की तहसील भर के संग्रह अमीनों में बडी डिमांड थी। 

बाकुडी (छडी)  साइकिल की हैंडिल पर लटकाकर चलते थे। उनकी साइकिल लहराते हुए चलती थी। मामा की बाकुडी  की भी एक कहानी है। आमतौर पर बुजुर्ग लोग ही बाकुडी लेकर चलते हैं, लेकिन मामा के हाथों में तो जवानी के दिनों में ही बाकुडी आ गई थी। दरअसल मामा की साइकिल की चाल बडी बेढंगी थी। उनको साइकिल चलाने के लिए कम से कम दो मीटर चौडा रास्‍ता चाहिए। रास्‍ते में अगर कोई जानवर बैठा है तो दुर्घटना तय है। जो जानवर मोटरसाइकिल को आते देखकर भी चैन से बैठे बैठे जुगाली करते रहते हैं वो मामा की साइकिल को दूर से आते हुए देखते ही उठ खडे हो जाते हैं जैसे अब भूचाल आने वाला हो। मामा जब तक उनके सामने से गुजर नहीं जाते थे ये जानवर उनको कातर नजरों से देखते रहते हैं।  कई तो इतने डरे हुए थे कि अपना खूंटा तोडाकर भाग जाते थे। आमतौर पर ये जानवर आवारा भैसा या सांड के आने पर ऐसा करते हैं।

कई कुत्‍ते भी मामा की साइकिल की चपेट में आकर अपना पैर गंवा चुके थे। जब घायलों की संख्‍या बढने लगी तो गांव के कुत्‍तों ने अपनी सुरक्षा के लिए एक उपाय किया। मामा के उत्‍तर दिशा से गांव में प्रवेश करते ही उत्‍तर दिशा वाले कुत्‍ते ऐसी आवाज में चिल्‍ल पों मचाते थे मानों उन पर किसी का आक्रमण हो गया हो। उनकी इस चिल्‍ल पों में आक्रामकता नहीं होती। ये कुत्‍ते तब तक भौंकते रहते जब तक आगे के रास्‍ते के उनके साथी भौंकने नहीं लगते थे। इतने बडे गांव में मामा के प्रवेश के दो मिनट बाद ही गांव के हर कोने से कुत्‍तों की आवाजें आने लगती थीं, मानों गांव में चारों ओर से दुश्‍मन गांव के सैकडों कुत्‍ते एक साथ घुस आए हों। कहने का गरज यह कि मामा के गांव में घुसते ही दो मिनट के भीतर भयभीत कुत्‍ते यह सार्वजनिक कर देते कि मामा के साइकिल के दोनों खूनपिपासू पहियों की गांव की धरती पर धमक हो चुकी है। गांव आने वाले लगभग सभी मेहमानों को भी पता होता था कि यह मामला मामा बनाम कुत्‍तों का है।

 हमारे गांव के कुत्‍तों में आए इस बदलाव के तुरंत बाद मामा को भी अपनी सुरक्षा की चिन्‍ता सताने लगी। उनको यह आशंका सताने लगी कि उनसे आहत कुत्‍ते कभी भी उन पर आक्रामक हो सकते हैं। उस समय उनके संग्रह अमीन केदार सिंह हुआ करते थे। गांधी टोपी लगाने वाले केदार सिंह भी एक विचित्र किरदार हैं, उनके बारे में फिर कभी। मामा ने जब अपनी चिन्‍ता केदार सिंह को बताई तो उनका ही सुझाव था कि एक बाकुडी ले लो। इससे एक पंथ दो काज हो जाएगा। कुत्‍तों से तो सुरक्षा होगी ही जिस बकायेदार के पास अपनी यह बाकुडी लेकर जाओगे तो वह डर के मारे तकाबी जमा जाएगा। तबसे मामा के हाथ में बाकुडी देखी जा रही है।  लोग बताते हैं कि जिस बकायेदार के दरवाजे मामा की साइकिल पहुंच जाए तो क्‍या मजाल कि वह तकाबी (बकाया) जमा न करे। संग्रह अमीनों की नौकरी उनके रेवेन्‍यू रिकवरी पर ही चलती है, इसलिए जो भी संग्रह अमीन हमारे गांव के लिए नियुक्‍त होता था वह मामा को ही अपना चपरासी बना लेता था।

ये अदभुत मामा हैं। ऐसे मामा जिनको मामा कहो तो गाली देते हैं। सीताराम चाचा के साले हैं तो स्‍वाभाविक रूप से समूचे गांव जवार के लोग उनको मामा ही कहेंगे। सच बताउं तो द्वापर के शकुनी मामा, त्रेता के मारीचि मामा और कलियुग के माहिल मामा के सबसे होनहार वारिस हैं। गांव के एक एक बच्‍चे को उसके नाम से नहीं उसके पिता के नाम से पहचानते थे। बच्‍चे उनको देखते ही मामा नमस्‍ते, मामा नमस्‍ते कहने लगते थे। लेकिन मामा आशिर्वाद देने की जगह यह कहते हुए निकल जाते थे कि फलाने के बेटा रूको तुम्‍हारे बाप से तुम्‍हारी शिकायत करते हैं। कभी कभी बहुत गुस्‍से में वह उस लडके के पिता के पास भी जाते थे, लेकिन बच्‍चे के पिता भी मामा कहकर अभिवादन करते तो विचारे बहुत दुखी होकर अपने गंतव्‍य की ओर यह भुनभुनाते हुए चले जाते थे कि इस गांव के कुएं में ही भांग पडा हुआ है। बेटा तो बेटा वाप भी कम नहीं हैं।

एक दिन इससे भी मजेदार वाकया हुआ। दो लडकों ने देखा कि मामा आ रहे हैं, तो नजदीक आते ही मामा नमस्‍ते कहकर अभिवादन किया। आश्‍चर्यजनकरूप से मामा तनिक भी नाराज नहीं हुए उन दोनों के पास साइकिल रोककर पूछे बेटा मेरी दो बहनें थीं। एक रिक्‍शे वाले के साथ भाग गई और एक ने तांगे वाले से शादी कर ली, बताओ तुम दोनों उसमें से किसके बेटे हो। बच्‍चे मामा से इस तरह  के जवाब की उम्‍मीद भी नहीं कर रहे थे। सो अवाक मामा का चेहरा देखने लगे। मामा बार बार पूछे जा रहे थे कि बताओ तुम हमारी किस बहन के बेटे हो। उसमें एक लडका कुछ ज्‍यादा ही शरारती था। उसने कहा, मामा सीताराम चच्‍ची का, और दोनों लडके ताली पिटते वहां से भाग गए।  
हाजिरजवाब ऐसे कि बडे बडे पानी मांगने लगें। लोगों की टांग खिचाई करने में इनको बहुत मजा आता है। जब देखो किसी न किसी की खिचाई करते मिलेंगे। एक बार क्‍या हुआ कि इलाके का जो दारोगा आया वह बडा ही मजाकिया मिजाज का था। उसने अपने थाना क्षेत्र में एलान कराया कि जो भी आदमी उसको मजाक में हरा देगा, वह उसे अपना गुरु मान लेगा।

गांव के लोग तो पहले से ही मामा की हाजिरजवाबी के कायल थे। इस प्रतियोगिता के लिए मामा से बेहतर कोई दूसरा उम्‍मीदवार उन्‍हें नहीं सूझ रहा था। गांव वालों ने यह प्रस्‍ताव मामा के सामने रखा तो गांव वालों से खार खाए मामा ने उनका प्रस्‍ताव ही खारिज कर दिया। जुम्‍मन, बलेसर, नारद और बीजी पंडित भी हजार कोशिश कर मामा को इस प्रतियोगिता के लिए तैयार नहीं कर सके। जुम्‍मन ने कहा मामा सीताराम चाचा की बात को नहीं टालते, चलो इसके लिए चाचा से बात करते हैं।

गांव के और कुछ लोगों को साथ लेकर चारो चकोरे चाचा के घर पहुंचे। पहुंचते ही जुम्‍मन मियां ने मामा वाला प्रस्‍ताव चाचा के समक्ष रख दिया। चाचा इस अटपटे प्रस्‍ताव को सुन नाराज होने लगे। तुम लोगों को फालतू बातों के अलावा और कुछ नहीं सूझती है क्‍या। बीजी ने फरमाया, चाचा अगर मामा ने यह प्रतियोगिता जीत लिया तो गांव के लोगों की थाने में इज्‍जत बढ जाएगी। दारोगा मामा को अपना गुरु मान लेगा। जितने लोग थे उतनी दलीलें थीं। चाचा ने कहा चलो उससे कहती है। उसमें से एक लडका दौडकर मामा को यह कहकर बुला लाया कि आपको सीताराम चाचा बुला रहे हैं। मामा के वहां पहुंचते ही चाचा ने कहा, इस प्रतियोगिता में जाने से कोई बुराई नहीं है। मुझे भरोसा है तुम्‍हारे सामने दारोगा पानी मांगते दिखेगी। केवल गांव वालों पर अपना कौशल दिखाती हो, तो अब साबित करने का समय आ गयी है कि वाकई तुम्‍हारे हाजिरजवाबी के आगे कोई दारोगा दारोगी भी नहीं टिकेगी। जब तक वह दारोगा रहेगी थाने में तुम्‍हारी रौब बढ जाएगी। चाचा का आदेश था,  और एक तहसील के चपरासी जैसे छोटे ओहदे वाले मामा के लिए दारोगा से मुकाबला करना बडी बात थी, तो मामा मना भी नहीं कर सकते थे। लिहाजा दारोगा के पास मुकाबले के लिए मामा की विस्‍तृत जानकारी पेठा दिया गया। दारोगा तो ऐसे जांबाज को खोज ही रहा था, लिहाजा उसने अगले ही दिन सुबह दस बजे का समय मुकर्रर कर दिया।

गांव के लोगों के हुजूम के साथ मामा ठीक दस बजे थाने पहुंचे। दारोगा ने लोगों की भीड देखकर अंदर ही अंदर प्रफुल्लित हो रहा था कि मुकाबला बहुत ही जोरदार होगा। आगे आगे मामा और पीछे पीछे भीड। मामा को आते देखकर ही वह भांप लिया कि यही उनका प्रतिद्वंद्वी है। ज्‍यों ही मामा अपने दल बल के साथ थाने के प्रवेश द्वार में घुसे दारोगा वहीं से ही चिल्‍लाकर बोला। सिपाहियों रोको इन लोगों को। ये कौन लोग हैं जो थाने में घुसे चले आ रहे हैं। यह कहते कहते दारोगा भी भीड के नजदीक पहुंच गया। गुस्‍से में नथुने फुलाते हुए बोला कि यह थाना है, खाला का घर नहीं कि मुंह उठाए चले आ रहे हो। तुम कौन हो भाई भीड लिये थाने में चले आ रहे हो। मामा समझ गए कि दारोगा जानबूझ कर हम लोगों पर रौब गालिब कर रहा है। हुजूर मुझे  घोघा बसंत कहते हैं। दारोगा ने कहा, बडा बढिया नाम है आपका। मामा कहां चूकने वाले थे। बोले, अगर मेरा नाम आपको बढिया लगा तो हुजूर यही नाम खुद ले लिया जाए। मामा का इतना कहना था कि दारोगा दोनों हाथ जोडकर मामा से बोला मैं आपसे मुकाबला नहीं कर सकता आज से आप मेरे गुरु हुए। दारोगा ने मामा के साथ गांव वालों की खूब खतिरदारी कर उन्‍हें विदा कर दिया। 

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